ग्यारहवीं शरीफ पर जुलूस-ए-गौसिया स्थगित, नात-ओ-मनकबत से गूंजी फिज़ा

बरेली। ग्यारहवीं शरीफ के मौके पर इस बार शहर से निकलने वाला पारंपरिक गौस-ए-पाक-ए-गौसिया नहीं निकाला गया। दरगाह की ओर से हालात को देखते हुए यह फैसला लिया गया। हर साल इस जुलूस में पुराने और नए शहर की करीब 80 अंजुमनें शिरकत करती हैं, लेकिन इस बार इसकी जगह महफ़िल-ए-गौसिया का आयोजन किया गया।
अहसन मियां की सदारत में हुई महफ़िल
दरगाह के नासिर कुरैशी ने बताया कि सज्जादानशीन व बानी-ए-जुलूस मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) की सदारत में सैलानी रज़ा चौक स्थित हाजी शरिक नूरी के आवास पर महफ़िल हुई। अंजुमन गौस-ओ-रज़ा (टीटीएस) के तत्वावधान में नमाज़-ए-फज्र के बाद कुरानख्वानी से कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
नात-ओ-मनकबत से सजी महफ़िल
महफ़िल का आगाज़ मुफ्ती अज़हर रज़ा की तिलावत-ए-कुरान से हुआ। इसके बाद जमन रज़ा और मौलाना मुनीर रज़ा ने नात-ओ-मनकबत का नज़राना पेश कर समां बांधा। कायद-ए-जुलूस मुफ्ती अहसन मियां के पहुंचने पर अंजुमन के सदर हाजी शरिक नूरी ने फूलों से उनका स्वागत कर दस्तारबंदी की।
गौस-ए-पाक की करामत पर बयान
मुफ्ती जईम रज़ा ने गौस-ए-पाक की करामात और शिक्षाओं पर रोशनी डालते हुए कहा
“शेख अब्दुल कादिर बगदादी ने हमें सिखाया कि कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न आए, सच और सब्र का दामन कभी न छोड़ें। जुल्म इस्लाम का हिस्सा नहीं है, न हम किसी पर जुल्म करें और न खुद पर जुल्म सहें।”
आला हजरत का शेर गूंजा
निज़ामत करते हुए मौलाना अज़हर रज़ा ने आला हजरत का यह शेर पढ़ा“ये दिल, ये जिगर, ये आंखें, ये सिर, जहाँ चाहो रखो कदम गौस-ए-आज़म।”
फातिहा और लंगर तक्सीम
मौलाना बिलाल रज़ा और हाफिज फुरकान रज़ा ने फातिहा पढ़ी। इसके बाद तोशा शरीफ की फातिहा हुई और सभी जायरीन को लंगर तक्सीम किया गया।
बड़ी संख्या में लोग रहे मौजूद
महफ़िल में राशिद अली खान, हाजी शरिक नूरी, परवेज़ नूरी, अजमल नूरी, शाहिद नूरी, औरंगजेब नूरी, वामिक रज़ा, नासिर कुरैशी, अफज़ाल उद्दीन, जमाल खान, ताहिर अल्वी, मंज़ूर खान, मुजाहिद रज़ा, वसीम रज़ा, हाजी फैयाज़, फिरोज खान, शोएब रज़ा समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।