पुरनापुर में ‘अमृत’ सूखा, सरोवर सूना: लाखों की लागत से बना तालाब बदहाली का शिकार
बरेली के बिथरी चैनपुर ब्लॉक में अमृत सरोवर योजना का बुरा हाल, जल संरक्षण और सौंदर्यीकरण की सरकारी मंशा हुई फेल

बरेली। गांवों में जल संरक्षण और सुंदर सार्वजनिक स्थल विकसित करने के उद्देश्य से शुरू की गई अमृत सरोवर योजना की जमीनी हकीकत बरेली के ग्राम पंचायत पुरनापुर में उजागर हो गई है। लाखों रुपये खर्च कर बनाया गया अमृत सरोवर पूरी तरह सूख चुका है और अब वहां सिर्फ सूखी मिट्टी, झाड़-झंखाड़ और वीरानी नजर आती है।
सरकारी मंशा: जल संरक्षण और पर्यटन स्थल
अमृत सरोवर योजना के तहत सरकार की मंशा थी कि गांवों में छोटे-छोटे तालाबों का नवीनीकरण कर उन्हें जल संग्रहण और ग्रामीण पर्यटन का केंद्र बनाया जाए। यहां लोग सुबह-शाम टहलें, दोपहर में छांव में बैठें और भूगर्भ जल स्तर भी सुधरे। लेकिन पुरनापुर का अमृत सरोवर इन सब वादों पर पानी फेरता नजर आ रहा है।
लाखों खर्च, पानी नहीं
श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के तहत करीब 9.49 लाख रुपये की लागत से सरोवर के किनारे इंटरलॉकिंग, चबूतरा, बेंचें, और सूचना बोर्ड लगाए गए। साथ ही मनरेगा योजना से 1.35 लाख रुपये की लागत से मिट्टी कार्य, इनलेट और आउटलेट की व्यवस्था की गई थी। लेकिन बारिश के पानी के संरक्षण की पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण आज सरोवर पूरी तरह सूखा पड़ा है।
तालाब में नहीं रौनक, सिर्फ खामोशी
तालाब की तलहटी में अब सिर्फ सूखी घास, झाड़ियां और मिट्टी की परतें बची हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि वहां अब कोई टहलने तक नहीं आता। कई महीनों से वहां न जल है, न जीवन।
प्रशासनिक लापरवाही से बर्बाद हुआ सरकारी धन
स्थानीय ग्रामीणों ने सवाल उठाए हैं कि जब इस योजना पर लाखों खर्च हुए, तो उसका परिणाम क्यों नहीं दिख रहा? आउटलेट/इनलेट की सही प्लानिंग और जल संग्रहण पर ध्यान नहीं देने से पूरा प्रोजेक्ट फेल हो गया। इससे सरकारी धन की बर्बादी और जनता में निराशा दोनों ही साफ झलकते हैं।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
“तालाब तो बन गया, लेकिन पानी कहां है? हम लोग तो अब पास भी नहीं जाते। झाड़ियां ही झाड़ियां हैं।”— श्यामलाल, ग्रामीण निवासी
सरकार की मंशा चाहे जितनी अच्छी हो, लेकिन जब तक ज़मीनी स्तर पर योजनाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक ऐसे सरोवर ‘अमृत’ नहीं बल्कि ‘विफलता’ की मिसाल ही बनते रहेंगे।






