“मरीज की मौत पर कमीशनखोरी की मुहर!”

बरेली। “एम्बुलेंस में बैठते ही तय हो जाती है मरीज की किस्मत – इलाज मिलेगा या कमीशन का शिकार बनेगा?”
उत्तराखंड के एक मरीज की संदिग्ध मौत ने बरेली के निजी अस्पतालों और एंबुलेंस नेटवर्क की काली सच्चाई उजागर कर दी है। राधिका अस्पताल में बिना विशेषज्ञ, बिना जरूरी संसाधन के भर्ती किए गए मरीज की जान चली गई। अब CDR (कॉल डिटेल रिपोर्ट) में कमीशनखोरी और मिलीभगत के पक्के सबूत सामने आ चुके हैं।
“इलाज नहीं, सौदा हुआ मौत का”
रुद्रपुर निवासी उमेश कुमार ने अपने पिता भोला प्रसाद की मौत का जिम्मेदार राधिका अस्पताल, डॉ. विवेक गुप्ता, और एंबुलेंस चालक फूल सिंह को ठहराया है। 2023 में हार्ट अटैक आने पर मरीज को रामपुर से भोजीपुरा मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था।
लेकिन एंबुलेंस चालक ने मेडिकल कॉलेज के बजाय राधिका अस्पताल पहुंचा दिया, जहां न तो कार्डियोलॉजिस्ट था, न इमरजेंसी सुविधा। इलाज की जगह लापरवाही और देरी से मरीज की मौत हो गई।
CDR ने खोली पोल: ‘कमीशन कॉल’ का खेल
पुलिस जांच में फूल सिंह और अस्पताल स्टाफ के बीच कॉल डिटेल से यह साबित हुआ कि,अस्पताल और एंबुलेंस चालक के बीच कमीशन की डीलिंग पहले से तय थी। मरीज की हालत गंभीर थी, फिर भी उसे कम कमीशन देने वाले मेडिकल कॉलेज के बजाय प्राइवेट अस्पताल में भर्ती किया गया।
अस्पताल पर गंभीर आरोप: विशेषज्ञ नहीं, फिर भी किया इलाज
स्वास्थ्य विभाग की जांच में साफ हुआ कि ,राधिका अस्पताल में कोई हृदय रोग विशेषज्ञ तैनात नहीं था। डॉ. विवेक गुप्ता ने मरीज को ‘मामूली केस’ बताकर इलाज शुरू कर दिया। अब पुलिस डॉ. विवेक की डिग्री, रजिस्ट्रेशन और योग्यता की जांच कर रही है।
‘एम्बुलेंस माफिया’ का खुलासा – हाईवे पर मंडराती मौत की गाड़ियां
एंबुलेंस चालक इलाज से ज्यादा कमीशन में दिलचस्पी रखते हैं। मरीज के परिजन न हों, तो मनचाहे अस्पताल में भर्ती कर देते हैं। मरीज की हालत भले ही ICU की हो, लेकिन एंबुलेंस वहीं रुकती है जहां से पैसा मिले।
पुलिस के हाथ लगे पुख्ता साक्ष्य – चार्जशीट तय
एसपी सिटी मानुष पारीक ने बताया कि मामले की जांच में सीडीआर, बयान और अस्पताल दस्तावेजों से काफी कुछ स्पष्ट हो चुका है।
जल्द ही इस मामले में चार्जशीट दाखिल की जाएगी।