खेतों में उठी आग की लपटें… और जल गए किसानों के सपने: मीरगंज में 40 बीघा फसल राख, गांव में मातम

बरेली। रविवार दोपहर बरेली के मीरगंज क्षेत्र में ऐसी दिल दहला देने वाली घटना घटी, जिसने किसानों के सालभर की मेहनत और सपनों को जलती हुई आंखों के सामने खाक कर दिया। पहुंचा बुजुर्ग गांव के जंगल में लगी आग ने 40 बीघा में खड़ी गेहूं की फसल को चंद मिनटों में निगल लिया। खेतों में आग की लपटें उठती रहीं… और किसान बस खड़े होकर अपनी मेहनत को राख में बदलते देखते रहे।
“कुछ भी नहीं बचा बाबू… अब कैसे जिएंगे?” – बिलखते किसान की पुकार
किसान चुन्नीलाल पुत्र दुवाहर का गला रुंध गया, आंखें लाल थीं और चेहरा राख से सना हुआ। कांपती आवाज़ में बोले –
“फसल बहुत अच्छी थी… कर्ज उतारने की आस थी, बेटी की शादी के सपने थे। अब क्या बचा? अब किसके सहारे जिएंगे?”
उनके साथ कई और किसान भी फूट-फूट कर रो पड़े। जिन हाथों ने दिन-रात मेहनत करके फसल उगाई, आज वही हाथ राख उठाकर आसमान की ओर देख रहे थे।
जंगल की चिंगारी ने उजाड़ दिया खेतों का संसार
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आग गुलड़िया निवासी सानू पुत्र मुखिया के खेत से उठी, जहां 50 बीघा में फसल तैयार खड़ी थी। हवा तेज़ थी और गेहूं सूखे। आग ने पलक झपकते ही 40 बीघा फसल को अपनी चपेट में ले लिया। गांववालों ने जान की परवाह किए बिना आग बुझाने की कोशिश की, लेकिन विकराल लपटों के आगे सब बेबस हो गए।
गांव की गलियों में सन्नाटा, खेतों में राख का सागर
जहां कल तक लहराती फसलें थीं, आज वहां सिर्फ काली राख और जलन की बदबू है। खेत में पड़े अधजले डंठल किसानों के टूटे हौसले जैसे लगते हैं। पूरे गांव में सन्नाटा पसरा है – और आंखों में आंसू लिए हर किसान एक ही सवाल पूछ रहा है – “हमारा कसूर क्या था?”
प्रशासन से आस, पर राहत अभी दूर
सूचना पर थाना मीरगंज पुलिस और राजस्व विभाग मौके पर पहुंचे। लेखपाल ने नुकसान का आकलन शुरू कर दिया है। किसान चाहते हैं कि प्रशासन जल्द से जल्द मुआवज़ा और सहायता दे ताकि उनके बच्चों की रोटी और भविष्य बच सके।
आग लापरवाही से या साजिश? जांच के घेरे में है कारण
स्थानीय लोगों का मानना है कि खेतों में फेंकी गई जलती बीड़ी या माचिस की तीली इस हादसे की वजह हो सकती है। लेकिन कुछ लोग इसे साज़िश मान रहे हैं। फिलहाल प्रशासन हर एंगल से जांच कर रहा है।