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मुफ्ती अफ़रोज़ आलम सुपुर्द-ए-ख़ाक, जनाज़े में उमड़ा इमामों और अकीदतमंदों का सैलाब

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बरेली। दरगाह के वरिष्ठ आलिमे-दीन और मुफ़्ती अफ़रोज़ आलम को नम आंखों के साथ आज धौरा टांडा कस्बे में सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया। जनाज़े में शहर और आसपास के इलाकों से हज़ारों अकीदतमंदों, उलेमा और दानिशवरों ने शिरकत की। उनके आख़िरी दीदार के लिए लोगों का हुजूम मील मैदान में उमड़ पड़ा। सुबह 10 बजे दरगाह के सज्जादानशीन मुफ़्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) ने नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़ाई।

जनाज़े के बाद इसाले सवाब का भी आयोजन हुआ। मौके पर दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा ख़ान (सुब्हानी मियां) भी पहुंचे और उन्होंने ग़मगीन परिजनों को तसल्ली दी। सुब्हानी मियां ने कहा कि “मुफ़्ती अफ़रोज़ साहब का अचानक इस दुनिया से रुख़्सत होना सुन्नी मुस्लिम समाज के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। उनकी कमी को भर पाना मुमकिन नहीं है।”

इस मौक़े पर मंज़र-ए-इस्लाम के सदर मुफ़्ती आक़िल रज़वी, मुफ़्ती सलीम नूरी, मुफ़्ती अय्यूब नूरी, मुफ़्ती मोइनुद्दीन, मौलाना अख़्तर, मुफ़्ती जमील, मुफ़्ती सय्यद कफ़ील हाशमी, मुफ़्ती ज़ईम रज़ा सहित टीटीएस से परवेज़ नूरी, शाहिद ख़ान नूरी, औरंगज़ेब नूरी, अजमल नूरी, आदिल रज़ा, मुजाहिद बेग, अशमीर रज़ा, मंज़ूर रज़ा, शरीक बरकाती, गौहर ख़ान, सुहैल रज़ा और मिर्ज़ा जुनैद समेत बड़ी तादाद में उलेमा और अवाम शामिल रहे।

दरगाह के प्रवक्ता नासिर कुरैशी ने बताया कि मुफ़्ती अफ़रोज़ आलम अपने पीछे पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा छोड़ गए हैं। उनके निधन से धार्मिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर है।

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