उर्स-ए-रज़वी का समापन, लाखों अकीदतमंदों की हाज़िरी, सज्जादानशीन की दुआ पर नम हुई आंखें

बरेली। दरगाह आला हज़रत में चल रहे उर्स-ए-रज़वी का आज समापन एक रूहानी और जज़्बाती मंज़र के बीच हुआ। सज्जादानशीन मुफ़्ती अहसन मियां की क़ियादत में कुल की रस्म अदा की गई। इस दौरान मुल्क के कोने-कोने से आए लाखों जायरीन ने शिरकत कर इमाम अहमद रज़ा फ़ाज़िले बरेलवी को खिराज-ए-अक़ीदत पेश किया।
इस्लामिया मैदान से लेकर दरगाह तक का इलाका रज़ा के आशिकों से खचाखच भरा रहा। हर गली, हर चौक “इश्क़ मोहब्बत आला हज़रत” के नारों से गूंज उठा। मानो पूरा शहर एक ही साज में ढल गया हो।
सज्जादानशीन की दुआ पर रो पड़ा मजमा
समापन पर मुफ़्ती अहसन मियां ने पूरे आलम-ए-इस्लाम और इंसानियत की भलाई के लिए दुआ की। उन्होंने मुल्क में अमन-ओ-सुकून, भाईचारा और मोहब्बत की बहाली की फरियाद की। लाखों अकीदतमंद हाथ उठाकर “आमीन” कहते रहे और उनकी आंखों से आंसू बह निकले। दुआ के दौरान पूरा माहौल रुहानी कैफियत से सराबोर हो गया।
इंतज़ामात रहे काबिले तारीफ
तीन रोज़ा उर्स के दौरान तहरीक-ए-तहफ्फुज़-ए-सुन्नियत, जमाअत रज़ा-ए-मुस्तफ़ा और दरगाह प्रबंधन ने सुरक्षा, ट्रैफिक और जायरीन की सहूलियत के बेहतरीन इंतज़ाम किए। व्यवस्थाओं में राशिद अली खान, मौलाना ज़ाहिद रज़ा, हाजी जावेद खान, नासिर कुरैशी समेत सैकड़ों खिदमतगुज़ारों ने अहम भूमिका निभाई।
जामिआतुर्रज़ा में कुल शरीफ, नम हुई आंखें
दिल्ली हाईवे स्थित जामिआतुर्रज़ा में कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। इस मौके पर मुफ्ती असजद रज़ा क़ादरी ने मुल्क और उम्मत के लिए दुआ की। देश-विदेश से आए उलमा ने आला हज़रत की इल्मी व रूहानी खिदमात पर रोशनी डाली। गयास मियां (कालपी), गुलज़ार मियां (मासोली), मुफ्ती अख्तर हुसैन समेत कई आलिमों के खिताब से महफ़िल में रूहानियत तारी रही।
उलेमा-ए-किराम के पैग़ाम
मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी : “सुन्नी सूफी खानकाही विचारधारा ही दुनिया में अमन की गारंटी है। हमारा मुल्क एक खूबसूरत गुलदस्ता है।”
मुफ्ती तौहीद संभली : “बरेली आज भी मसलक-ए-आला हज़रत का मरकज़ है।”
मुफ्ती इमरान हनफ़ी : “मसलक-ए-रज़ा ही वफ़ा-ए-रसूल का रास्ता है।”
मौलाना इरफान उल हक क़ादरी : “दुनिया भर में पैगंबर-ए-इस्लाम का 1500 साला जश्न-ए-विलादत मनाया जाएगा।”
मुफ्ती कफील हाशमी : “आला हज़रत ने अकेले 12 जिल्दों का फतावा रज़विया लिखकर इल्मी दुनिया को हैरान कर दिया।”
कारी सखावत नूरी : “जुलूसों में डीजे बजाना मज़म्मत-ए-लायक है, इसे सख्ती से रोका जाए।”
उर्स-ए-रज़वी का यह समापन सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं रहा, बल्कि यह साबित कर गया कि बरेली आज भी इश्क़-ए-रसूल का मरकज़ है। लाखों जायरीन की मौजूदगी और सज्जादानशीन की दुआओं ने इस शहर की पहचान को फिर पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया।