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मेडिकल कॉलेजों को लाशों की सप्लाई: यूपी में पुलिस-कर्मचारियों का शर्मनाक खेल बेनकाब

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बरेली। उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से एक ऐसा काला कारोबार सामने आया है, जो मानवता को शर्मसार कर देता है। जिला अस्पताल के पोस्टमॉर्टम हाउस में लावारिस लाशों का सौदा हो रहा है! कर्मचारी, पुलिसकर्मी और दलाल मिलकर इन शवों को प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को बेच रहे हैं। एक लाश की कीमत 40 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक तय हो जाती है। दैनिक भास्कर की स्टिंग ऑपरेशन में यह घिनौना खेल कैमरे पर कैद हो गया, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

कर्मचारी का कबूलनामा: “महीने में 30-40 लाशें बिक जाती हैं, ऊपर वालों को हिस्सा देना पड़ता है”

पोस्टमॉर्टम हाउस में तैनात कर्मचारी सुनील ने स्टिंग में खुलासा किया कि वह अब तक दर्जनों लाशों का सौदा कर चुका है। “महीने में 30 से 40 लाशें निकल जाती हैं। आप बहुत कम दे रहे हो। पुराना रेट तो डेढ़ लाख चल रहा था। राममूर्ति मेडिकल कॉलेज वाले डेढ़ लाख देकर ले जाते थे,” सुनील ने कहा। उसने आगे बताया, “जो पैसे आप हमें दोगे, वो तो नमक बराबर रखते हैं। बाकी सब ऊपर वालों को चढ़ाना पड़ता है।” सुनील ने यह भी दावा किया कि सीतापुर, हरदोई, पीलीभीत जैसे आसपास के जिलों से भी लाशें मंगाई जा सकती हैं। यह नेटवर्क सिर्फ बरेली तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे यूपी में फैला हुआ लगता है।

पुलिस की संलिप्तता: “SHO साहब से बात कर लेंगे, कमाई सबको करनी है”

इस घोटाले में पुलिस की भूमिका सबसे शर्मनाक है। सुनील ने खुद नगर कोतवाली के सिपाही नरेंद्र कुमार सिंह से मिलवाया। नरेंद्र ने बिना झिझक कहा, “कमाई तो सबको करनी है। SHO साहब से बात करनी पड़ेगी, हम कर लेंगे।” उसने स्वीकार किया कि पहले उसे पोस्टमॉर्टम का ‘चार्ज’ मिलता था और किसी की परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती। पूर्व कोतवाल गीतेश कपिल का नाम भी सामने आया, जिन्होंने कथित तौर पर लाश बेचने की इजाजत दी थी।

कागजों में अंतिम संस्कार, हकीकत में बिक्री: सरकारी पैसे का भी दुरुपयोग

इस पूरे खेल में फर्जीवाड़ा भी शामिल है। पुलिस और स्टाफ कागजों पर लाशों का अंतिम संस्कार दिखा देते हैं। सरकारी खजाने से 3400 रुपये प्रति शव का खर्च चढ़ा दिया जाता है, लेकिन असल में लाशें मेडिकल कॉलेजों को बेच दी जाती हैं। यूपी के कई प्राइवेट मेडिकल कॉलेज MBBS कोर्स की मान्यता बनाए रखने के लिए इन लाशों को खरीदते हैं, जहां इन्हें एनाटॉमी की पढ़ाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह सब बिना कानूनी प्रक्रिया के हो रहा है।

कानून और मानवाधिकार का अपमान: दंडनीय अपराध, फिर भी जारी

वरिष्ठ वकील रंजीत राठौर ने कहा, “संविधान हर व्यक्ति को सम्मानजनक अंतिम संस्कार का अधिकार देता है। यूपी सरकार की SOP के मुताबिक, लावारिस शवों का धर्मानुसार अंतिम संस्कार पुलिस-प्रशासन की जिम्मेदारी है।” लेकिन यहां IPC की धारा 297 (मृतक शव का अपमान) और BNS की धारा 301 के तहत दंडनीय अपराध हो रहा है। सरकारी 3400 रुपये की सहायता राशि भी दलालों के पेट में समा जाती है। यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि मृतकों के सम्मान का भी हनन।

नेटवर्क का दायरा: बरेली से लखनऊ तक फैला ‘मौत का कारोबार’

खुलासे से पता चला कि यह सौदा बरेली तक सीमित नहीं। सीतापुर, हरदोई, पीलीभीत और संभवतः लखनऊ जैसे जिलों में भी यह चल रहा है। स्टिंग में कर्मचारियों ने इन जिलों से लाशें मंगाने की बात कही। यूपी में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की बढ़ती संख्या ने इस काले धंधे को हवा दी है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ और बरेली जैसे शहरों में यह कारोबार फल-फूल रहा है।

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